विश्व जल दिवस 22 मार्च पर विशेष अमूल्य संसाधन – जल 

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भारतवर्ष की सनातन सभ्यता ,सनातन संस्कृति ,मानवता के साथ-साथ प्रकृति की पुजारी भी रही है । यहां वृक्षों को पूजा जाता है । पृथ्वी को पूजा जाता है । पहाड़ों को पूजा जाता है ।जीवधारी की भी स्थिति के अनुरूप पूजा की जाती है। यहां सूर्य ,चन्द्र तथा अग्नि की पूजा होती है । वहीं पर जल की भी पूजा “वरुण देव “के रूप में की जाती है। प्रत्येक शुभ अवसर पर वरुण देव यानि जल देवता का आवाहन एवं पूजन किया जाता है। हमारे ऋषि मनीषी प्राकृतिक वैज्ञानिक थे। उन्होंने अपने अध्ययन से यह जाना कि — जल जीव धारी के लिए भोजन से भी अधिक आवश्यक है । जीवन के लिए जल अनिवार्य है । पुराने समय में प्रदूषण या जल प्रदूषण नगण्य था । और नदियों झरनों तथा वर्षा जल संचयन से पीने के पानी की पूर्ति होती थी । समय बदला , परिवर्तन आए ,तेजी से जनसंख्या बढ़ी । विकास के लिए वनों की कटाई हुई । पर्यावरण में परिवर्तन हुए और प्राकृतिक संसाधनों से जलापूर्ति में न्यूनता आई । मनुष्य का विकास हुआ तो उसने भूगर्भ को भी छेद कर , भूजल दोहन शुरू कर दिया और दोहन भी अति की ओर चल रहा है ।

प्रतिवर्ष 22 मार्च को” विश्व जल दिवस” का आयोजन किया जाता है । 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह घोषणा की गई कि –22 मार्च को विधिवत” विश्व जल दिवस” का आयोजन किया जाएगा , और 1993 से यह नियमित रूप से चल पड़ा ! पूरी दुनिया के जल का 97% जल पीने योग्य नहीं है । केवल तीन प्रतिशत जल पीने योग्य है और इस 3% को पूरी मानव जाति , जीवधारी एवं वनस्पति के हेतु मीठा जल माना गया है । अब जनसंख्या वृद्धि तथा लोगों की जल संचयन के प्रति लापरवाही के कारण , वह तीन प्रतिशत जल भी सभी को पीने लायक नहीं मिल पाता । अतः जल के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए, जल संरक्षण के प्रति मनुष्य को जागरूक करने के उद्देश्य से , यह” विश्व जल दिवस” आयोजित किया जाता है । अनेक पर्यावरण विद् एवं मानवतावादी लोगों ने मिलकर यह विचारण किया कि –जल को कैसे हर व्यक्ति तक हर जीव तक पहुंचाया जाए ? प्रतिवर्ष जल दिवस को मनाने के लिए एक — ध्येय वाक्य (थीम )का निर्धारण किया जाता है ।वर्ष 2024 के लिए बनाया गया ध्येय वाक्य “शांति के लिए , जल का लाभ ” बनाया गया है। जो बहुत ही अच्छा वाक्य चुना गया है। आज वैश्विक अशांति के दौर में , शांति की कल्पना भी सुखद है । जल को शांति का एक उपकरण बनाया जा सकता है ।

भारत के जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में वर्ष में उपयोग किए जाने वाले शुद्ध जल की अनुमानित मात्रा 1121 बीसीएम है ।और वर्ष 2025 में यह तेजी से बढ़ेगी । वहीं विद्वानों का मानना है की 2050 तक बढ़कर यह 1447 बीसीएम तक पहुंच जाएगी । संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पीने योग्य जल की मात्रा कम होती जा रही है। कई राज्य भूजल के निम्र्तर स्तर तक चले गए हैं । उत्तर पश्चिम क्षेत्र तो 2025 तक ही पेयजल के गहन संकट में आ जाएंगे । ऐसी स्थिति में जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। विकास के नाम पर जल का अति दोहन हो रहा है। जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है । पानी के साधन सीमित हैं तो ऐसे में एक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पानी का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में हो रहा है । जाने अनजाने में पानी के दुरुपयोग तथा जल एवं मृदा प्रदूषण के कारण लोग पीने के पानी के संकट से जूझ रहे हैं । जब पानी का अभाव होता है, या पानी लोगों की पहुंच से दूर होता है तो लोगों के बीच ,समुदायों के बीच , दो देशों के बीच तनाव बढ़ जाता है । दुनिया भर के 2.5 अरब से अधिक लोग , राष्ट्रीय सीमाओं को पार करने वाले जल पर निर्भर करते हैं। फिर भी पड़ोसी देशों के साथ नदियों , झरनों तथा झीलों को साझा करने वाले, 150 देश में से बहुत थोड़े देशों ने , आपसी सहयोग समझौते किए हैं । जैसे-जैसे वैश्विक जनसंख्या बढ़ रही है , वैसे-वैसे ही जल संरक्षण एवं सुरक्षा की चिंता बढ़ रही है। भारतवर्ष के आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय का मानना है कि प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी प्रतिदिन की खपत है । इस खपत से अपशिष्ट जल की मात्रा भी बढ़ती है । यदि इसे 75 से 80 लीटर प्रति व्यक्ति कर लिया जाए , तो काफी सुधार की संभावना है । जल शोधन यंत्रों पर भी कम दबाव रहेगा । पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा, वरना तो निकट भविष्य में ही भीषण जल संकट उपस्थित होने के आसार हैं । अभी भी अनेक नगरों महानगरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि जल का स्तर कई मीटर नीचे चला गया है। जो कि चिंता का विषय है। जल पर राजनीति तो उचित नहीं है, परन्तु राजनीति में जल अवश्य होना चाहिए । ताकि हर राजनीतिक व्यक्ति, राजनीतिक दल इस विकराल समस्या से मुंह न मोड़ सके।

इनके अतिरिक्त स्वयं सेवी संस्थाओं तथा समाज को भी , जन आंदोलन चलाकर , सरकार का सहयोग करना चाहिए ।अकेले सरकार को जल प्रबंधन के लिए उत्तरदाई नहीं माना जा सकता । प्रत्येक व्यक्ति यदि जल संरक्षण को अपनी व्यक्तिगत समस्या मान ले , तो परिणाम सुखद होंगे । प्रत्येक व्यक्ति यदि चाहें तो ,निम्न बिंदुओं पर सहयोग कर सकते हैं ।–

— पीने के लिए उतना ही पानी लें जितने की आवश्यकता हो । गिलास पूरा भरकर नहीं । — नहाते समय बाल्टी का प्रयोग करने से भी पानी बचाया जा सकता है ।

— ब्रश या शेविंग करते समय , नल को खुला ना छोड़े ।

— आर ओ से निकले व्यर्थ पानी का उपयोग बागवानी अथवा बर्तनों की धुलाई में किया जा सकता है ।

— कार अथवा मोटरसाइकिल की धुलाई में समय अंतर बढ़ा देना चाहिए ।

— घर में या कार्यालय में यदि नलकी किसी टोंटी से अनावश्यक पानी टपकता है, तो उसे बन्द कर देना चाहिए।

— फ्लश का प्रयोग बार-बार नहीं करना चाहिए । हर बार लगभग बीस लीटर पानी बह जाता है।

— स्थानीय मौसम के अनुकूल ऐसे खाद्य पदार्थों को सेवन करें जिसमें पानी कम लगता हो ।

— मांसाहार की अपेक्षा ,शाकाहार अपनाएं । क्योंकि मांसाहारी भोजन में अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है ।

— पेड़ पौधे लगाते रहे , जिससे प्राण वायु मिलती रहे । वर्षा हो सके ।

— वर्षा जल का संचयन सामूहिक रूप से किया जाना चाहिए ।

— कृषि कार्यों में “टपक विधी ” तथा छिटकाव ( स्प्रिंकल सिस्टम ) जैसी आधुनिक तकनीकों से सिंचाई करनी चाहिए ताकि पानी का अपव्यय रोका जा सके ।

कहने का तात्पर्य यह है कि, जिस तरह से भी हो सके पानी को बर्बाद हो ने से बचाया जाए। ताकि हर व्यक्ति को पीने का पानी मिल सके ।

नरेंद्र कुमार शर्मा , राष्ट्र पुरस्कृत शिक्षक

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