सोनभद्र जनपद के ओबरा तहसील अंतर्गत बिल्ली खनन क्षेत्र में हुए भीषण हादसे के बाद आज खनन निदेशक माला श्रीवास्तव का दौरा कई सवाल खड़े कर गया। यह दौरा उस घटना के बाद पहला आधिकारिक निरीक्षण माना जा रहा था, जिसमें बीते 15 नवम्बर को एक पत्थर खदान में हुए दर्दनाक हादसे में सात मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई थी।हादसे के बाद खान सुरक्षा निदेशालय द्वारा क्षेत्र की कई पत्थर खदानों को डेंजर जोन घोषित करते हुए खनन गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। ऐसे में स्थानीय लोगों, मजदूर संगठनों और प्रशासन की नजरें इस दौरे पर टिकी थीं।
उम्मीद जताई जा रही थी कि खनन निदेशक स्वयं घटना स्थल पर पहुंचकर हालात का जायजा लेंगी, पीड़ित परिवारों की पीड़ा को समझेंगी और सुरक्षा मानकों की वास्तविक स्थिति को परखेंगी।लेकिन निरीक्षण के दौरान खनन निदेशक द्वारा सीधे हादसे वाली खदान का दौरा न कर, उसके आसपास स्थित अन्य खदानों तक ही सीमित रहना, क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। घटना स्थल से दूरी बनाए रखने को लेकर स्थानीय लोगों में नाराजगी और असमंजस का माहौल देखा गया।निदेशक के आगमन की सूचना मिलते ही खनन क्षेत्र में असामान्य सन्नाटा पसरा रहा। जहां पहले मजदूरों की चहल-पहल रहती थी, वहां आज वीरानी छाई रही। बंद पड़ी खदानें, खामोश मशीनें और सहमे हुए मजदूर इस बात की गवाही दे रहे थे कि हादसे ने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है।प्राप्त जानकारी के अनुसार खनन निदेशक माला श्रीवास्तव का कार्यक्रम घटना स्थल निरीक्षण का भी था, लेकिन अंतिम समय में वहां न पहुंचना कई गंभीर सवालों को जन्म दे रहा है। क्या हादसे के कारणों को लेकर कोई असहज स्थिति है? क्या सुरक्षा मानकों की अनदेखी से जुड़े तथ्य सामने आने की आशंका है? या फिर निरीक्षण केवल औपचारिकता बनकर रह गया?स्थानीय नागरिकों और मृतक मजदूरों के परिजनों का कहना है कि जब तक शीर्ष अधिकारी स्वयं घटना स्थल पर जाकर हालात नहीं देखेंगे, तब तक न तो सच्चाई सामने आएगी और न ही भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने की ठोस व्यवस्था बन पाएगी।बिल्ली खनन हादसे में सात मजदूरों की मौत ने पहले ही प्रशासन और खनन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे में खनन निदेशक का यह दौरा, जो जवाब देने के बजाय सवाल और बढ़ा गया, आने वाले दिनों में राजनीतिक और प्रशासनिक बहस का बड़ा मुद्दा बन सकता है।
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