सोनभद्र ओबरा: स्थानीय ओबरा इंटरमीडिएट कॉलेज में सरकारी धन के भयंकर दुरुपयोग का एक विचित्र मामला प्रकाश में आया है। वैसे तो इससे पूर्व भी समाचार पत्रों में इस विद्यालय में चल रहे भ्रष्टाचार का खेल उजागर होता रहा है, जिनमें टीसी, अंकपत्र के नाम पर अवैध वसूली और विद्यार्थियों को प्रताड़ित करने के गंभीर आरोप लगे थे, लेकिन इस बार भ्रष्टाचार के तमाम रिकॉर्ड तोड़ते हुए करोड़ों के सरकारी धन का दुरुपयोग अप्रैल 2023 से ही होने की सूचना मिली है। दरअसल ओबरा नगर के इस बहुचर्चित विद्यालय को मात्र ₹- 300 प्रति माह पर डीएवी को देने के बाद लाखों रुपए वेतन पा रहे वहां के शिक्षकों को भी फ्री में डीएवी को दे दिया गया है। मतलब साफ है,ये शिक्षक वेतन तो सरकार से ले रहे हैं, लेकिन संभवतः निगम प्रबंधन के दबाव में नौकरी प्राइवेट संस्था डीएवी की कर रहे हैं। प्राइवेट संस्था डीएवी इन्हीं फ्री के शिक्षकों से पढ़वाकर छात्रों से मोटी फीस वसूल रही है, जो पहले की फीस से लगभग 45 गुना अधिक है। आजाद भारत के इतिहास में यह पहली घटना है जिसमें सरकारी शिक्षकों को प्राइवेट संस्था में नौकरी के लिए बकायदा प्रतिनियुक्ति भी दिया गया है। यह बात न तो शिक्षकों और न ही जनप्रतिनिधियों को पता है, और अगर इन दोनों को ही पता है तो निश्चित ही ढोल के अंदर बहुत बड़ा पोल है। कदाचित शिक्षक भी इस भ्रष्टाचार में शामिल हैं। यह भी पता चला है कि डीएवी प्रधानाचार्य कक्षावार वास्तविक फीस बताते नहीं, और शासन के स्पष्ट निर्देश के बाद भी जो भी लेनी है उसे दीवार पर लिखवाते भी नहीं। विश्वस्त सूत्रों से यह भी पता चला है कि भारी भरकम अवैध फीस वसूली के समय ऑनलाइन भुगतान लेने से मना कर दिया जाता है क्योंकि इसमें फँसने का डर होता है। जो भी हो डीएवी के भ्रष्टाचार में निगम प्रबंधन और शिक्षकों के शामिल होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। यक्ष प्रश्न यह है कि इतने बड़े पैमाने के आर्थिक भ्रष्टाचार को उजागर करेगा…कौन ? दोषियों को सजा मिलेगी..कब..?
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