
सोनभद्र। आदिवासी बनवासी यह शब्द ऐसे शब्द है जिन्हें बोलने मात्र ही उनकी स्थिति और अवस्था के साथ ही मजबूरियों का दृश्य नजरों के सामने आ जाती है। आज भी हमारे लोकतांत्रिक देश भारत में शिक्षा का ग्राफ अन्य देशों की तुलना में बहुत ही नीचे है और खासकर आदिवासियों और वनवासियों के ज्यादातर बच्चे अशिक्षित है ।इसका मुख्यकारण उनकी गरीबी मानी जाती है। शिक्षा नही मिलने के नतीजन वे आज भी ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर है जिसका अंदाजा भी नही लगाया जा सकता। अब चुकी इन्हें अतिपिछड़ा माना गया है इसलिए इनके शिक्षा व जीवन में बेहतर सुधार व विकास के लिए तमाम तरह के प्रयास किए गए है। आदिवासियों के बच्चों को शिक्षा की ओर अग्रसर करने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय आश्रम पद्धति विद्यालय योजना चलाई गई ताकि आदिवासी बनवासी के बच्चों को निःशुल्क व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उत्तम खान पान मिले उन गरीब परिवारों के होनहार छात्रों को जो पढ़-लिखकर आगे बढ़ना चाहते हैं, उन्हें आईएस, आईपीएस और पीसीएस के साथ ही अन्य पदों पर बैठाया जा सके और ये समाज मे अपनी अहम भूमिका निभा सके। मगर यूपी के सोनभद्र जिले के दुद्धी तहसील मुख्यालय पर स्थित राजकीय आश्रम पद्घति के विद्यालय में चयनित होकर आए आदिवासियों के बच्चों के साथ शिक्षा में कटौती, खान पान में कटौती , रहन सहन में कटौती बीते चार वर्षों से चल रहा है। और यह बात प्रधानाचार्य भी बोल गए कि दाल चावल सब्जी और रोटी भी बताया होगा बाकी दूध के साथ ही सब कुछ गायब उनके भोजन देने की व्यवस्थाओं में इतनी गड़बड़ियां हैं कि बच्चे इसे लेकर खासे परेशान हैं. बच्चों के अनुसार उन्हें पानी सरीखा दाल चावल और केवल आलू का सब्जी दिया जाता है।ना सिर्फ खाना बल्कि विद्यालय की अन्य व्यवस्थाएं भी बच्चों को परेशान किए हुए हैं. बच्चों के अनुसार उनके कमरे और शौचालय की साफ-सफाई कभी नही होती है. विद्यालय परिसर में चारो तरफ गंदगी का अंबार लगा है. रात में लाइट चली जाती है तो उन्हें टॉर्च की रोशनी में पढ़ाई करनी पड़ती है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बच्चों के बेहतर विकास की बात करके, बच्चों की शिक्षा और भविष्य से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है.विद्यालय में अध्ययनरत आदिवासी बच्चों ने उच्च अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हुए उनके हक को उन्हें दिलाने के लिए मीडिया के माध्यम से गुहार लगाई है ताकि आदिवासी बच्चों का जो हक है मूलभूत सुविधाओं का वो मिल सके।
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